बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
अध्याय - 11
विशिष्टाद्वैत वेदान्त
(Visistadvaita Vedanta)
प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
अथवा
रामानुज, माया के सिद्धान्त का किस प्रकार खण्डन करते हैं? आलोचनात्मक विवेचना कीजिये।
उत्तर -
श्वेताश्वरोपनिषद् में ईश्वर को मायावी कहा गया है। रामानुज के अनुसार, इसका अर्थ यह है कि सृष्टि की रचना करने वाली ईश्वर की शक्ति मायावी की शक्ति के समान अद्भुत है। माया का अर्थ ईश्वर की विचित्रार्थ साकिरी ( अद्भुत विषयों की सृष्टि करने वाली) शक्ति है। कभी-कभी उससे अघटन घटनां पटीयसी प्रकृति का भी बोध होता है।
माया या अविद्या की आलोचना
रामानुज के अनुसार, सभी ज्ञान सत्य होता है और कोई भी विषय मिथ्या नहीं है। सर्प रज्जु भ्रम में भी असत् पदार्थ की प्रतीति नहीं होती। भ्रमों की उत्पत्ति के मूल उपादान विषयों में ही रहते हैं। जो तीनों तत्व (तेज, जल, पृथ्वी ) सर्प में विद्यमान हैं वे ही रज्जु में भी हैं। शंकर के अनुसार, भ्रम अविद्या के कारण है। यह अविद्या न संत् है और न असत्। अतः अविद्या या माया अनिर्वचनीय है। शंकर के इस अविद्या अथवा माया के विचार के विरुद्ध रामानुज ने निम्नलिखित सात तर्क उपस्थित किये हैं -
1. आश्रयानुपपत्ति - अविद्या का कोई आश्रय नहीं हो सकता। यदि यह कहा जाए कि अविद्या का आश्रय (Locus) जीव है तो शंका उठती है कि जीव तो स्वयं अविद्या का कार्य है और कारण कार्य पर कैसे आश्रित रह सकता है? यदि ब्रह्म आश्रय है तो फिर वह शुद्ध ज्ञान, स्वस्थ कैसे रहेगा? अद्वैत के अनुसार, जीव और ब्रह्म किसी को भी अविद्या का आश्रय मानने में उपरोक्त कठिनाइयाँ नहीं उपस्थित होतीं। ब्रह्म अविद्या का आश्रय होकर भी उसके दोषों से उसी प्रकार प्रभावित नहीं होता जैसे कि मायावी स्वयं अपनी माया से प्रभावित नहीं होता। इसी प्रकार जीव भी अविद्या का आश्रय नहीं हो सकता है क्योंकि उनमें कार्य कारण सम्बन्ध नहीं है। वे एक ही वस्तु के दो परस्परोक्ष सहवर्ती अंग हैं।
2. तिरोधानानुपपत्ति - अविद्या से ब्रह्म का तिरोधान हो जाता है। ब्रह्म स्वयं प्रकाश है। अविद्या का आवरण पड़ने से उसका स्वरूप ही नष्ट हो जाता है और ब्रह्म का नाश हो जाता है। इसके उत्तर में शंकर के अनुयायियों का कहना है कि जैसे मेघ से आच्छादित सूर्य का लोप नहीं होता उसी प्रकार ब्रह्म पर अविद्या का आवरण होने से उसके स्वरूप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, केवल अज्ञानी जीव को ही ब्रह्म का यथार्थ रूप नहीं दिखता।
3. स्वरूपानुपपत्ति - अविद्या को सत् नहीं सिद्ध किया जा सकता। अविद्या सत् है अथवा असत् उसके सत् मानने से अद्वैत में बाधा आती है। वह असत् भी नहीं हो सकती क्योंकि न तो वह ज्ञाता है न ज्ञेय और न ज्ञान। ज्ञाता और ज्ञेय तो स्वयं अविद्या के कारण हैं। ज्ञान में विद्या होने से वह ज्ञान अथवा ब्रह्म के समान नित्य हो जायेगी। . अविद्या अनिर्वचनीय नहीं कही जा सकती क्योंकि सभी पदार्थ या तो सत् होते हैं या असत्। इन दो कोटियों के अतिरिक्त तीसरी कोटि नहीं हो सकती।
4. अनिर्वचनीयानुपपत्ति - तीसरे और चौथे आक्षेप के उत्तर में अद्वैतवादियों का कहना है कि माया न सत् है और न असत् उसकी प्रतीति होती है, अतः उसे बन्ध्या-पुत्र अथवा आकाशकुसुमं के समान नितान्त असत् नहीं माना जा सकता। कालान्तर के अनुभव से बाधित होने के कारण उसे आत्मा अथवा ब्रह्म के समान सर्वथा अबाधित सत् भी नहीं माना जा सकता। माया को अनिर्वचनीय कहने का यही तात्पर्य है कि उसे सत् अथवा असत् इन दोनों की सामान्य कोटियों में नहीं रखा जा सकता। इसमें कोई विरोध नहीं है क्योंकि सत् का अर्थ यहाँ ‘पूर्णतः सत्य' और असत् का अर्थ 'पूर्णतः असत्य' है। इन दोनों के बीच में तीसरी कोटि वैसे ही सम्भव नहीं है जैसे पूर्ण प्रकाश और पूर्ण अन्धकार के बीच में तीसरी कोटि सम्भव नहीं है।
5. प्रमाणनुपपत्ति - अविद्या को भावरूप नहीं सिद्ध किया जा सकता। अज्ञान का अर्थ ज्ञान का अभाव है। अतः वह भावरूप कैसे माना जा सकता है? इसलिए उसे प्रत्यक्ष अथवा अनुमान किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं किया जा सकता। इसके उत्तर में अद्वैतवादियों का कहना है कि अज्ञानमूलक भ्रम जैसे सर्प रज्जु भ्रम में केवल वस्तु के ज्ञान का अभाव ही नहीं रहता, बल्कि विषयान्तर का आभास अर्थात् सर्प का अभाव भी रहता है इस अर्थ में ही माया को भावरूप अज्ञान कहा गया है।
6. निवर्त्तकानुपपत्ति - ज्ञान से अविद्या का निवर्त्तन नहीं हो सकता। बन्धन यथार्थ है और कर्म के कारण हैं। अतः उनका निराकरण ईश्वर की भक्ति और उसकी कृपा से ही हो सकता है। अभेद का ज्ञान स्वयं मिथ्या है। अतः यह कैसे निवर्त्तक हो सकता है। फिर अविद्या निवर्त्तक ज्ञान न तो जीव हो सकता है और न ब्रह्म। अतः अविद्या का निवर्त्तन करने वाला ज्ञान असम्भव है। रामानुज मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञानमार्ग का खण्डन करके भक्तिमार्ग की स्थापना करते हैं।
7. निवृत्यानुपपत्ति - ब्रह्म ज्ञान से भावरूप विद्या का नाश नहीं हो सकता। भावरूप सत्ता का नाश ज्ञान के द्वारा नहीं हो सकता। रामानुज के अनुसार, अविद्या का नाश ईश्वर के सतत् चिन्तन, आत्मा के यथार्थ ज्ञान और वर्णाश्रम धर्म के पालन करने से ही हो सकता है।
अद्वैतवादियों का इस विषय में यह कहना है कि दैनिक जीवन में हम देखते हैं कि मिथ्या विषय (जैसे सर्प) पहले भाव रूप में प्रकट होता है और फिर यथार्थ वस्तु (जैसे-रज्जु) का ज्ञान होने पर नष्ट हो जाता है। अतः भावरूप अविद्या ब्रह्मज्ञान से नष्ट हो सकती है।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- क्या भारतीय दर्शन जीवन जगत के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण अपनाता है? विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में तत्व सम्बन्धी बातों पर निबन्ध लिखिये।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के ईश्वर सम्बन्धी विचार दीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिये।
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- प्रश्न- चार्वाक के भौतिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक की तत्व मीमांसा का स्वरूप क्या है?
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
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- प्रश्न- ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन के आत्मा सम्बन्धी विचार दीजिए।
- प्रश्न- सुख प्राप्ति ही जीवन का अन्तिम उद्देश्य है। बताइये।
- प्रश्न- चार्वाक के ज्ञान सिद्धांत की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "चार्वाक की तत्वमीमांसा उसकी ज्ञान मीमांसा पर आधारित है।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन महावीर के जीवन वृत्त तथा शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में जैन धर्म के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन में स्याद्वाद किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन दर्शन के सात वाक्य भंगीनय लिखिए।
- प्रश्न- सात वाक्यों का आलोचनात्मक दृष्टिकोण से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैनों के बन्धन तथा मोक्ष सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य का परिचय दीजिये।
- प्रश्न- द्रव्य के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- द्रव्य को आकृति द्वारा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जीव अथवा आत्मा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अजीव द्रव्य क्या है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन में जीव का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- जैन दर्शन के द्रव्य सिद्धान्त की समीक्षात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पतन के कारण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म व बौद्ध धर्म में समानताओं और असमानताओं का तुलनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- जैन धर्म की शिक्षाएँ क्या थीं?
- प्रश्न- पुद्गल किसे कहते हैं?
- प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र और धर्म पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जैन धर्म के पाँच महाव्रत बताइए।
- प्रश्न- जैन धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय बताइए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
- प्रश्न- सांख्य की 'प्रकृति' तथा वेदान्त की 'माया' के बीच सम्बन्ध की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के उत्थान व पतन के क्या कारण थे? समझाइये।
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति में बौद्ध धर्म का योगदान बताइये।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या आशय है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बुद्ध ने कौन से दुःख के कारणों के चक्र बताए? बौद्ध दर्शन के तृतीय आर्य सत्य की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म पर लेख प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के चार सम्प्रदाय लिखिए।
- प्रश्न- क्षणिकवाद का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निर्वाण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बौद्ध संगीतियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाजनपदों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं?
- प्रश्न- भारतीय संस्कृति को बौद्ध धर्म की क्या देन थी?
- प्रश्न- क्या बौद्ध दर्शन निराशावादी है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के गुणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सत्, रज और तम गुण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकृति के गुणों के क्या परिणाम होते हैं?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के अनुसार सत्कार्यवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के तत्व सम्बन्धी विचार लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- ज्ञानेन्द्रियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- पुरुष के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। पुरुष के अस्तित्व के लिए सांख्य द्वारा दिये गये तर्कों की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- योग दर्शन से क्या तात्पर्य है? समझाइये।
- प्रश्न- पंतजलि ने योग सूत्रों को कितने भागों में बाँटा?
- प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- योग दर्शन में तीन मार्ग कौन से हैं?
- प्रश्न- योग के अष्टांग साधन बताइए।
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- प्रश्न- योग दर्शन के पाँच नियमों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- योग' से आप क्या समझते हैं? योग साधना के विभिन्न सोपानों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- योग दर्शन में ईश्वर के स्वरूप की विवेचना कीजिए तथा उसके अस्तित्व को सिद्ध करने सम्बन्धी प्रमाणों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैराग्य क्या है? इसकी भेदों सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन से ईश्वर किन रूपों में कार्य करता है।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये? तथा न्यायशास्त्र का प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान' के स्वरूप और प्रकारो की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- प्रमा को परिभाषित करते हुए प्रमा के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमा की परिभाषा दीजिए तथा उसके सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रमाण की परिभाषा देते हुए प्रमाण के प्रमुख प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- न्याय के आलोक में पदार्थ के विभिन्न प्रकारों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द-प्रमाण में शब्द को स्वतन्त्र प्रमाण माना गया है विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपमान प्रमाण के स्वरूप का विवेचन करते हुए इसकी परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- 'न्याय दर्शन' में 'अनुमान प्रमाण के स्वरूप की व्याख्या कीजिए एवं अनुमान प्रमाण के प्रकारान्तर भेदों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- प्रत्यक्ष प्रमाण का स्वरूप क्या है?
- प्रश्न- न्यायदर्शन में निर्विकल्प प्रत्यक्ष का स्वरूप समझाइये।
- प्रश्न- न्यायदर्शन में उपमान प्रमाण का क्या स्वरूप है? न्याय दर्शन में उपमान प्रमाण का स्वरूप
- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में अनुमान प्रमाण का खंडन किस प्रकार करता है?
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- प्रश्न- प्रमा और अप्रमा के भेद को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में कितने प्रमाण स्वीकार किए गए हैं? सभी का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन क्या है? न्याय दर्शन और वैशेषिक दर्शन में आपस में क्या सम्बन्ध है? वैशेषिक दर्शन में सात प्रकार के पदार्थ बताइए।
- प्रश्न- व्याप्ति क्या है? व्याप्ति की स्थापना किस प्रकार होती है?
- प्रश्न- 'गुण' और 'कर्म' पदार्थों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- न्याय-वैशेषिक दर्शन में अनुमान का क्या स्वरूप है?
- प्रश्न- समानतन्त्र के रूप में न्याय वैशेषिक की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संयोग और समवाय पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीमांसा से क्या तात्पर्य है इसे भली-भाँति समझाइये।
- प्रश्न- पूर्व मीमांसा किसे कहते हैं?
- प्रश्न- द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसा दर्शन में ज्ञान के कितने साधन माने गये हैं?
- प्रश्न- उपमान किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अर्थापत्ति किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अनुपलब्धि या अभाव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मीमांसा के तत्व विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मीमांसकों ने 'आत्मा' का क्या स्वरूप बतलाया है?
- प्रश्न- शंकराचार्य ने ब्रह्म के कितने स्वरूपों की व्याख्या की है?
- प्रश्न- ब्रह्म और माया क्या है?
- प्रश्न- ब्रह्म और जीव क्या हैं?
- प्रश्न- माया में कितनी शक्तियों का समावेश है?
- प्रश्न- "ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या" शंकर के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? शंकर के ब्रह्म और जगत सम्बन्धी विचारों के सन्दर्भ में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत दर्शन में जीव के बंधन और मोक्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- प्रभाकर मत में अख्यातिवाद क्या है? और यह किस प्रकार भट्ट मत के विपरीत ख्यातिवाद से भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शंकर का अद्वैत वेदान्त क्या है?
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त में निर्गुण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म में क्या भेद बताया गया है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के 'ईश्वर' विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- जीव किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शंकर के अद्वैतवाद तथा रामानुज के विशिष्ट द्वैतवाद में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन किसे कहते हैं? शंकर के वेदान्त दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- क्या विश्व शंकर के अनुसार वास्तविक है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज शंकर के मायावाद का किस प्रकार खण्डन करते हैं?
- प्रश्न- शंकर की ज्ञान मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शंकर के ईश्वर विचार की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- माया क्या है? माया सिद्धान्त की रामानुज द्वारा दी गई आलोचना का विवरण दीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के विशिष्टाद्वैत वेदान्त से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ब्रह्म क्या है? ईश्वर व ब्रह्म में भेद बताइए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार मोक्ष व उनके साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जीवात्मा के भेदों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रामानुज के अनुसार ज्ञान के साधन क्या हैं?
- प्रश्न- रामानुज के 'जीव सम्बन्धी विचार की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- रामानुज के जगत की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशिष्ट द्वैत दर्शन की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- चित् व अचित् तत्व क्या हैं?
- प्रश्न- बन्धन और मोक्ष क्या है?
- प्रश्न- चित्त क्या है?